Fri 19 September 2025
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ক্যাফে কাব্যে प्रभंजन घोष

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ক্যাফে কাব্যে प्रभंजन घोष

मानचित्र

देखो कैसे दुनिया चल राहा है अर, कैसे चल रहि हैं बद्-दुनिया, दुनियाका विचों विच कैसे धुयां उड़ राहा है कैसे उठ रहें हैं मांस का वुं , हाड्डि-हरकत-लहूंका- - - देखो,आदिम नंगोका खलबले, फुल चाहते नेही, खुशवुं ना चाहतें आनोखि जमिन् खर्जुर-वावुल-सिंघाड़ा, चाहते नेहि कोइ रंगोका पराग; देखो लहु लोहान चाहतें हैं जमिन का अन्दर किड़ें जैसे धुन् उठाना चाहतें हैं देखो,वाच्चो का पाहाड़ के अन्दर छोड़ आता है अर,पाहाड़ों का उप्पर कैसे खिदमत् कर जातें हैं- देखो,कैसे दुनिया चल राहा है अर,कैसे चल रहें हैं बद्-दुनिया।
Admin

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