ক্যাফে কাব্যে प्रभंजन घोष

मानचित्र

देखो कैसे दुनिया चल राहा है
अर, कैसे चल रहि हैं बद्-दुनिया,
दुनियाका विचों विच
कैसे धुयां उड़ राहा है
कैसे उठ रहें हैं मांस का वुं ,
हाड्डि-हरकत-लहूंका- – –
देखो,आदिम नंगोका खलबले,
फुल चाहते नेही, खुशवुं
ना चाहतें आनोखि जमिन्
खर्जुर-वावुल-सिंघाड़ा,
चाहते नेहि कोइ रंगोका पराग;
देखो लहु लोहान चाहतें हैं
जमिन का अन्दर किड़ें जैसे
धुन् उठाना चाहतें हैं
देखो,वाच्चो का पाहाड़ के अन्दर
छोड़ आता है
अर,पाहाड़ों का उप्पर कैसे
खिदमत् कर जातें हैं-
देखो,कैसे दुनिया चल राहा है
अर,कैसे चल रहें हैं बद्-दुनिया।

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