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Writing In Other Language By मांगी क़रीर

प्यास

प्यास नहीं होठों में उसके,
वह तो युगों का प्यासा था।
दूर से जो भरा हुआ था,
पास से वह रेता था।
वह अपने रेतीले होठों से,
प्यास तलाश रहा था।
सागर उसके भीतर का,
उसको निगल रहा था।
पाषाण सी बेचैनी को
कभी मिटटी, कभी आकाश,
कभी धूप में तलाश रहा था।
वह अपनी प्यास समेटे
खुद ही में भटक रहा था।……….
————– मांगी क़रीर
(Mangi

प्यास
——————
प्यास नहीं होठों में उसके,
वह तो युगों का प्यासा था।
दूर से जो भरा हुआ था,
पास से वह रेता था।

वह अपने रेतीले होठों से,
प्यास तलाश रहा था।
सागर उसके भीतर का,
उसको निगल रहा था।

पाषाण सी बेचैनी को
कभी मिटटी, कभी आकाश,
कभी धूप में तलाश रहा था।

वह अपनी प्यास समेटे
खुद ही में भटक रहा था।……….

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