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Writing In Other Language By Pankaj Jain

हे माँ मेरी हे जननी मेरी,
तेरे उदर से हूं मैं आया ।
जन्म से पहचाना मैने बस तुझको,
बाकी रिश्तों का वजूद तूने हैं बताया ।
भूख लगी हो या हो लंगोट गीली,
रोना बस मुझको आता था ।
पर मेरे रोने का सटीक कारण,
तुझको झट से पता चल जाता था ।
तेरे आंचल में सलोना बचपन गुज़रा,
जवानी में मिली तेरे आशीर्वाद की छाया ।
उतारी हैं तूने मेरी नज़र इतनी,
कि छू न सकेगा मुझे किसी का बुरा साया ।
आज भी हँसी के पीछे छुपा,
मेरा गम तू पहचानती हैं ।
यूँ तो हैं जानकार बहुत मेरे,
पर माँ बस तू ही मुझको जानती हैं ।
मेरी खुशी के लिए माँ,
तूने गम भी स्वीकारा हैं ।
और तू चली आई दौड़कर,
जब-जब मैंने खुदा को पुकारा हैं ।
– कवि पंकज जैन
(नई दिल्ली)
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