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অনুবাদ কবিতায় সৌমিত্র চক্রবর্তী

অটলবিহারী বাজপেয়ীর কবিতা

हरी हरी दूब पर
ओस की बूंदे
अभी थी,
अभी नहीं हैं|
ऐसी खुशियां
जो हमेशा हमारा साथ दें
कभी नहीं थी,
कहीं नहीं हैं|
क्कांयर की कोख से
फूटा बाल सूर्य,
जब पूरब की गोद में
पाँव फैलाने लगा,
तो मेरी बगीची का
पत्ता-पत्ता जगमगाने लगा,
मैं उगते सूर्य को नमस्कार करूं
या उसके ताप से भाप बनी,
ओस की बूंदों को ढूंढूं?
সবুজ ঘাসের ওপর
শিশির বিন্দু
এখনই ছিল,
এখন নেই।
এইসব খুশীরা
যা সর্বদাই আমাদের সঙ্গী হয়
কখনো ছিল না,
কোথাও নেই।
অন্ধকারের গর্ভ থেকে
ফুটন্ত শিশু সূর্য,
যখন পূর্বের কোলে
পা ফেলতে শুরু করেছে,
তখনই আমার বাগানে
গাছের পাতারা উদ্ভাসিত হল,
আমি উদীয়মান সূর্যকে প্রনাম করি
নাকি তার তাপীয় বাষ্পে সৃষ্ট
শিশির বিন্দু খুঁজতে যাই?
(মূল হিন্দি থেকে অনুবাদ সৌমিত্র চক্রবর্তী)
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